Saturday, March 10, 2007

किताबें

किताबें
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'



जीवन की मुस्कान किताबें
बहुत बडा़ वरदान किताबें।
गूँगे का मुँह बनकर बोलें
बहरे के हैं कान किताबें ।
अन्धे की आँखें बन जाएँ
ऐसी हैं दिनमान किताबें ।
हीरे मोती से भी बढ़कर
बेशकीमती खान किताबें ।
जिन के आने से मन हरषे
ऐसी हैं मेहमान किताबें ।
क्या बुरा यहाँ क्या है अच्छा
करती हैं पहचान किताबें ।
धार प्रेम की बहती इनमें
फैलाती हैं ज्ञान किताबें ।
राहों की हर मुश्किल को
कर देती आसान किताबें ।
इस धरती पर सबके ऊपर
सबसे बड़ा अहसान किताबें ।
इनसे अच्छा दोस्त न कोई
करती हैं कल्याण किताबें ।
कभी नहीं ये बूढ़ी होती
रहती सदा जवान किताबें ।

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